Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Jharkhand Assembly Election 2019: वोट बहिष्कार के साए में जीने वाले कुंदा में चुनावी खुमारी

    By Sujeet Kumar SumanEdited By:
    Updated: Thu, 21 Nov 2019 09:13 PM (IST)

    Jharkhand Assembly Election 2019. चतरा के कुंदा प्रखंड में नक्सलियों के खौफ से कभी मतदान से डरते थे ग्रामीण और नेता। अब खूब होता है प्रचार।

    Hero Image
    Jharkhand Assembly Election 2019: वोट बहिष्कार के साए में जीने वाले कुंदा में चुनावी खुमारी

    चतरा, [जुलकर नैन]। सुदूरवर्ती जंगलों के बीच बसा चतरा के कुंदा प्रखंड का माहौल अब बिल्कुल बदल चुका है। जहां कभी दहशतगर्दी के साए में वोट बहिष्कार का डंका बजता था, आज उसी धरती की हसीन वादियों में झारखंड व बिहार की ताल पर चुनाव के मधुर तराने गूंज रहे हैं। चहुंओर चुनाव प्रचार का खुमार चढ़ा हुआ है। पिछले तीन दशक तक इंसानी रक्त से रंजित यह धरती मानवता की रक्षा का त्राहिमाम संदेश दे रही थी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    तकरीबन तीन दर्जन पुलिसकर्मियों की शहादत और सौ से ज्यादा नागरिकों को मौत के घाट उतार दिए जाने की साक्षी इस धरती का कलेजा उग्रवादी तांडव से फटता था। जनसंवाद की दुहाई देने वालों के हाथों नागरिक आजादी के कत्लेआम से जनतंत्र तार-तार था। माओवादियों ने इसे अपने सुरक्षित जोन में तब्दील कर रखा था। हालात के मद्देनजर लोग इसे उग्रवाद का जाफना कहने लगे थे।

    समय ने पलटी खाया और बदल गए कुंदा के हालात। माथे पर लगा उग्रवाद का कलंक लगभग मिट चुका है। विधानसभा चुनाव की तैयारियां इसकी गवाही दे रही हैं। चहुंओर उत्साह का आलम है। प्रशासन जनसहयोग से वोट प्रतिशत बढ़ाने, शांति और सुविधा पूर्ण मतदान कराने में जुटा है। जबकि चुनावी समर के योद्धा मतदाताओं को रिझाने में।

    चुनाव प्रचार के संगीत ने मतदाताओं को चुनाव की खुमारी में डुबो दिया है। नागपुरी और भोजपुरी गीतों को प्रचार का माध्यम बनाया गया है। वोटरों के मन में अब नक्सल का भय नहीं है। कुंदा पंचायत की मुखिया रेखा देवी के पति लवकुश कुमार गुप्ता कहते हैं-बदलाव बहुत आया है। मतदाता खुलकर अपने मतों का प्रयोग करते हैं। लवकुश गुप्ता कहते हैं कि 2000 के विधानसभा चुनाव में माओवादियों के बहिष्कार के बावजूद वोट किया था। दूसरे दिन भी उसका परिणाम देखने को मिल गया।

    माओवादियों के दस्ता ने उनके घर पर धावा बोल दिया और परिवार के सभी सदस्यों को बाहर निकाल कर ताला लगा दिया। इतना ही नहीं, उन्हें अपने साथ ले गए। घर में एक महीना तक ताला लगा रहा। जन अदालत लगी और उसके बाद मामले का हल निकाला गया। अब वैसी बातें नहीं है। प्रखंड मुख्यालय से सात किलोमीटर दूर साहपुर गांव निवासी संजय यादव कहते हैं कि हालात में अब काफी सुधार हुआ है।

    दस से पंद्रह वर्ष पूर्व तो स्थिति ऐसी थी कि चुनाव के दिन घर छोड़कर जंगल में चले जाते थे। मतदान केंद्रों पर सन्नाटा पसरा रहता था। लेकिन अब वैसी स्थिति नहीं है। सुबह से ही वोटर कतारबद्ध हो जाते हैं। सरजमआतु गांव निवासी जितेंद्र यादव कहते हैं कि प्रखंड का अपेक्षित विकास नहीं हुआ।

    लेकिन अब पहले जैसी स्थिति नहीं है। प्रकृति ने इस प्रखंड को बहुत कुछ नवाजा है। माइंस और मिनरल का भरमार है। जंगलों में औषधीय पेड़ पौधों भरे पड़े हुए हैं। इसलिए कुंदा का विकास निश्चित है। बहरहाल कुंदा के माथे पर लगा दहशतगर्दी का कलंक मिट चुका है। अब वहां वोट बहिष्कार नहीं, बल्कि जनतंत्र की जय हो रहा है।